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रामायणकालीन छत्तीसगढ़ | छत्तीसगढ़ में रामायण का इतिहास
June 11 2022 By Admin Tag

रामायणकालीन छत्तीसगढ़ | छत्तीसगढ़ में रामायण का इतिहास

रामायण में ऐसे अनेक तथ्य हैं जो इस बात का संकेत करते हैं कि ऐतिहासिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ प्रदेश की प्राचीनता रामायण युग को स्पर्श करती है। उस काल में दण्डकारण्य नाम से प्रसिद्ध यह पुरातन काल में ऋषि-मुनि जंगलों में निवास करते थे इसके साथ ही वह प्रान्त आर्य-संस्कृति का प्रचार केन्द्र था। यहाँ के एकान्त वनों में ऋषि-मुनि आश्रम बना कर रहते और तपस्या करते थे। इनमें वाल्मीकि, अत्रि इत्यादि प्रमुख ऋषियों मे से एक थे|

 राम के काल में भी कौशल राज्य उत्तर कौशल और दक्षिण कौशल में विभाजित था। कालिदास के रघुवंश काव्य में उल्लेख है कि राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुस को कुशावती का राज्य दिया था। 

आखिर क्या है छत्तीसगढ़ का “राम वन गमन पथ”

आयोध्या से वनवास को चले भगवान श्रीराम के पग ( पैर ) जहां-जहां पड़े थे, अब वहां राम वन गमन पथ बनाया जाएगा। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने भी छत्तीसगढ़ में राम वन गम पथ बनाने की तैयारी पूरी कर ली है | इससे रामभक्तों को वहां तक पहुंचना आसान होगा। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण की शुरुआत होने के बाद ही राम वन गमन पथ पर काम शुरू हो गया है।  

क्यों जरुरी है राम वन गमन पथ का बनना ?

छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि पुरे भारत देश में भगवान् श्री राम के भक्तो की संख्या लगातार बढ़ रही है जिसको देखते हुए राम वन गमन पथ बनना आवश्यक हैं इससे लोगो को रामायण के प्रमाण के साथ-साथ भगवान् श्री राम के उन जगहों के साक्षात दर्शन हो जाएंगे जहा-जहा वनवास के समय भगवान् ने पग पड़े थे | 

राम वन गमन पथ से लोगो को क्या मिलेगा?

लोगो को भगवान् के उन जगहों के साक्षात् दर्शन हो पाएंगे जहा जहा प्रभु श्री राम वनवास के समय आये थे और जब उनजगहो को राम वन गमन पथ से सजाया जाएगा तब लोगो के गावं शहर कस्बे आदि सभी को लोकल और नेशनल लेवल में पहचान मिलेगी जिससे उनको भी गर्व महसूस होगा | 

14 वर्ष के वनवास में राम छत्तीसगढ़ में कहा – कहा गए?

मान्यता के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु राम ने लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था. वनवास काल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया के सीतामढ़ी हरचौका से किया था. उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए वे छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों से गुजरे.  

ये वो नौ स्थान है जहा जहा श्री राम प्रभु गए ते सीतामढ़ी हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बालौदाबाजार), चांदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा सप्तर्षि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा)।

राम भगवान् का छत्तीसगढ़ से रिश्ता कितना प्राचीन है?

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 25 किलोमीटर दूर स्थित एक छोटा सा कस्बा चंदखुरी जो अचानक छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के राम वन गमन पथ के निर्माण के निर्णय से सामने आया। चंदखुरी भगवान राम की माता माता कौशल्या का पैतृक घर है अर्थात उनके पिता का घर है |  

छत्तीसगढ़ भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण की कहानी को परिलक्षित करता है जो अपने 14 साल के वनवास के दौरान इस प्रांत के जंगलों में रहते थे। इस पर्यटन सर्किट के माध्यम से, भक्त कोरिया जिले के सीतामढ़ी के हरचौका से सुकमा में रामराम तक भगवान राम से संबंधित आध्यात्मिक अवसरों का अनुभव कर सकेंगे। इससे साबित होता है कि भगवान् श्री राम और छत्तीसगढ़ का रिश्ता जन्मो पुराना है।

छत्तीसगढ़ में रामायण का प्रमाण

छत्तीसगढ़ की भूमि रामायण काल ​​की प्रमुख घटनाओं का गवाह रही है। भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में 75 स्थानों की यात्रा की थी जो 2260 किलोमीटर तक फैले राम वन गमन पथ में बुने जाएंगे।                  

राज्य सरकार ने भगवान राम की इन पवित्र स्मृतियों को संरक्षित करने और राज्य के सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ाने के लिए कोरिया से सुकमा तक भगवान राम के सभी स्थानों को पुनर्स्थापित और विकसित करके राम वन गमन पथ बनाने का निर्णय लिया है। वनवास काल के दौरान भगवान राम ने कोरिया जिले से छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था और भरतपुर तहसील के जनकपुर में सीतामढ़ी-हरचौका छत्तीसगढ़ में उनका पहला पड़ाव माना जाता है। 

मवई नदी के तट के पास सीतामदी-हरचौका की गुफाओं में 17 कक्ष हैं। इस स्थान को ‘सीता की रसोई’ और ‘शिलाखंड’ के नाम से भी जाना जाता है, माना जाता है कि यह भगवान राम के पदचिह्न हैं।

बस्तर के शासकों का ‘रथपति’ होने के प्रमाण स्वरूप आज भी दशहरे में रथ निकाला जाता है तथा दन्तेश्वरी माता की पूजा की जाती है। यह राम की उस परम्परा का संरक्षण है जब कि दशहरा के दिन राम ने शक्ति की पूजा कर लंका की ओर प्रस्थान किया था। राजाओं की उपाधियों से यह स्पष्ट होता है राम ने छत्तीसगढ़ प्रदेश के तत्कालीन वन्य राजाओं को संगठित किया और चतुरंगिनी सेना का निर्माण कर उन्हें नरपति, गजपति, रथपति और अश्वपति उपाधियाँ प्रदान की। इस प्रकार रामायण काल से ही छत्तीसगढ़ प्रदेश राम का लीला स्थल तथा दक्षिण भारत में आर्य संस्कृति का केन्द्र बना।

अगर आप राम वन पथ गमन पथ के बारे मे और जानकारी चाहते हैं तो कृपया इन लिंक्स पे क्लिक करें –

पत्रिका – छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ के चिन्हित स्थान होंगे विकसित

News18 – Ram Van Gaman Paripath: कोरिया से सुकमा तक 2260 KM के सफर में हर कदम पर होंगे श्रीराम के दर्शन, देखें PHOTOS

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